चरण सिंह क्यों किसानों के मसीहा? उनके किन 3 भूमि कानूनों ने बदले हालात

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Chaudhary Charan Singh: पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा कहा जाता है. वह उनके दुखदर्द समझते थे और उन्हें दूर करने के लिए पूरी कोशिश करते थे. उन्हें आज भी किसानों के नेता के रूप में याद किया जाता है. किसानों के हित में उन्होंने कई बड़े काम किए थे. चौधरी चरण सिंह द्वारा उत्तर प्रदेश में लागू किये गये तीन भूमि सुधार कानून राज्य में कृषि और किसानों की स्थिति में आमूलचूल बदलाव लाने वाले साबित हुए. चौधरी साहब भारत के गांवों को अच्छी तरह से समझते थे. वह चाहते थे कि ऐसी नीतियां बनाई जाएं ताकि शहर और गांव के बीच को अंतर को कम किया जा सके. चरण सिंह के तीन परिवर्तनकारी भूमि सुधार कानूनों ने सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त मध्यम किसान वर्ग बनाने में मदद की.

चरण  सिंह के अनुसार भारतीय समाज में विभाजन की मुख्य रेखा कृषक और शहरी लोगों के बीच थी. शहरी लोग गरीब किसानों पर अपना वर्चस्व जमाते हैं और कृषकों की परेशानियों के प्रति उनकी कोई सहानुभूति नहीं होती. शहर में पला-बढ़ा गैर-किसान गरीब ग्रामीण को उसी तिरस्कारपूर्ण लहजे में ‘देहाती’ या ‘गंवार’ कहता है. जिस तरह कोई यूरोपीय व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के सभी भारतीयों को गाली देता है. यह तब था जब खेती भारत के लगभग 70 फीसदी वर्कफोर्स को रोजगार देती थी और 1950-51 में इसके सकल घरेलू उत्पाद का 54 फीसदी उत्पादन करती थी. 

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यूपी जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम
उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण था उत्तर प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था को बदलने वाले तीन प्रमुख कानूनों को पारित कराना. पहला था यूपी जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 (जेडएएलआर). इसने उन जमींदारों को हटा दिया जो सरकार को कर देते थे, उन जमीनों से जो उनके खुद के स्वामित्व में थीं और उन जमीनों से भी जो दूसरों द्वारा खेती की जाती थीं, जिसमें किरायेदार किसान भी शामिल थे. जेडएएलआर ने सभी सत्यापित किरायेदार-किसानों को उनकी जोतों में स्थायी और विरासत में मिली हिस्सेदारी दी. जमींदारों ने कर-किसान या किसान और राज्य के बीच मध्यस्थ होना बंद कर दिया. जबकि उनके पास केवल उन जमीनों पर स्वामित्व अधिकार था जिन्हें वे अपनी, स्व-खेती वाली जोतें साबित कर सकते थे. जेडएएलआर ने मूल रूप से पुरानी जमींदारी कृषि प्रणाली को बदल दिया. एक नई ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था स्थापित की. जो किसान-स्वामियों के स्वामित्व और परिवार के आकार के खेतों पर खेती करने पर आधारित थी. इसके लाभार्थी मुख्य रूप से मुस्लिम, यादव, गुज्जर, कुर्मी और अन्य ओबीसी जातियों से आने वाले पूर्व वंशानुगत काश्तकार थे.

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यूपी चकबंदी अधिनियम
दूसरा था यूपी चकबंदी अधिनियम, 1953. चरण सिंह चाहते थे कि किसान-मालिक न केवल स्वतंत्र हो, बल्कि एक कुशल किसान भी हो. नए कानून ने प्रत्येक भूस्वामी को उसी गांव के अन्य किसानों के साथ समान गुणवत्ता वाले भूखंडों की अदला-बदली करके अपने बिखरे हुए भूखंडों को चकबंदी करवाने में सक्षम बनाया. विचार यह था कि प्रत्येक मालिक-किसान को एक ही भूमि का टुकड़ा दिया जाए, जिससे वह अधिक उत्पादक जोत बन सके. 1976-77 तक, उत्तर प्रदेश में लक्षित 14.6 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में से लगभग 14.2 मिलियन हेक्टेयर (एमएच) को चकबंदी अभियान के तहत लाया गया, जबकि वास्तविक हस्तांतरण और कब्जा 11.5 मिलियन हेक्टेयर से अधिक में हुआ. इस योजना को अपेक्षाकृत न्यूनतम भ्रष्टाचार के साथ लागू किया गया था, जो संभवतः 1950 के दशक में राजस्व मंत्री के रूप में चरण सिंह द्वारा इसकी सफलता में व्यक्तिगत रुचि लेने के कारण था.

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यूपी इम्पोजिशन ऑफ सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स एक्ट
आखिरी कानून यूपी इम्पोजिशन ऑफ सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स एक्ट, 1960 था. इसने पांच सदस्यों वाले परिवार के लिए 40 एकड़ उचित गुणवत्ता वाली भूमि की सीमा तय की. चरण सिंह ने वास्तव में न्यूनतम और अधिकतम दोनों तरह की भूमि जोत की परिकल्पना की थी – उनकी आदर्श सीमा 2.5-27.5 एकड़ थी – जिस पर किसान और उसका परिवार बहुत कम बाहरी श्रम के साथ खेती कर सकता था. ट्रैक्टर और अन्य उत्पादकता बढ़ाने वाली कृषि मशीनरी के उपयोग की अनुमति देने के लिए एक निश्चित न्यूनतम आकार की समेकित जोत आवश्यक थी.

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किसानों के लिए चाहते थे आरक्षण
चौधरी चरण सिंह ने 21 मार्च, 1947 को एक दस्तावेज जारी किया था , जिसका शीर्षक था, ‘क्यों 60% सेवाएं किसानों के बेटों के लिए आरक्षित होनी चाहिए.’ वह सरकारी नौकरियों और सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित शैक्षणिक संस्थानों में सीटों में भूमि के वास्तविक किसानों के बेटों या आश्रितों के लिए प्रतिनिधित्व की गारंटी चाहते थे. चरण सिंह मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री थे, जिसने जनवरी 1979 में बीपी मंडल के तहत पिछड़ा वर्ग आयोग की नियुक्ति की थी. दिसंबर 1980 में प्रस्तुत इसकी रिपोर्ट के आधार पर अगस्त 1990 में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (एससी/एसटी) के लिए मौजूदा 22.5 फीसदी के अलावा ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदायों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा की गई थी.

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केवल 23 दिन रहे प्रधानमंत्री
जनता पार्टी में कलह की वजह से मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई. बाद में कांग्रेस के समर्थन से 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने. हालांकि संसद का बगैर एक दिन सामना किए चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था. प्रधानमंत्री रहते हुए चरण सिंह ने ग्रामीण पुनरुत्थान मंत्रालय की स्थापना की थी. वह केवल  23 दिन के लिए भारत के प्रधानमंत्री रहे. उनका कार्यकाल 28 जुलाई 1979 से 20 अगस्त 1979 तक रहा. उनका जन्म 23 दिसंबर 1902 को हुआ था, जबकि उनका निधन 29 मई 1987 को हुआ. चरण सिंह जाट थे, लेकिन उन्होंने कभी खुद को उस समुदाय से नहीं जोड़ा. उन्होंने किसानों के पूरे वर्ग, खास तौर पर मुस्लिम, अहीर (यादव), जाट, गुज्जर और राजपूत के तथाकथित मजगर समाज से आने वाले किसानों के लिए आवाज उठायी. उन्होंने खुद को सिर्फ जाटों तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि इन सभी जातियों के किसानों के बीच लोकप्रिय बनाया. उनके जन्मदिन को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है.

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