अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के साथ एक “बहुत बड़े व्यापार समझौते” की संभावना जताई है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और भारत के बीच पारस्परिक शुल्क (Retaliatory Tariffs) को लेकर बातचीत जारी है और 9 जुलाई को व्यापार समझौते तय करने की समयसीमा समाप्त हो रही है।
वॉशिंगटन डीसी में गुरुवार को आयोजित ‘बिग ब्यूटीफुल बिल’ कार्यक्रम में भाषण देते हुए, डोनाल्ड ट्रंप ने बोला, ” हर देश हमारे साथ समझौता करना चाहता है। याद है कुछ महीने पहले मीडिया कह रही थी, ‘क्या सच में कोई इस व्यापारिक समझौते और पारस्परिक शुल्क की नई नीति पर दिलचस्पी दिखा रहा है?’ अब सुनिए — हमने कल ही चीन के साथ एक समझौता किया है। हम कई शानदार व्यापारिक समझौते कर रहे हैं। इसके अलावा और अब एक डील आने वाली है, शायद भारत के साथ। बहुत बड़ी डील, जिसमें हम भारतीय बाजार तक अपनी पहुंच बनाने जा रहे हैं। हमने चीन के साथ डील में भी कुछ ऐसा किया है। वहां कि बाजारों को अमेरिकन कंपनी के लिए खोलेगें। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति ने न तो चीन के साथ हुए समझौते के विवरण साझा किए और न ही भारत के साथ संभावित बड़े व्यापार समझौते को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी दी है।
9 जुलाई की समयसीमा: शुल्क से बचने की जद्दोजहद
अमेरिका ने 2 अप्रैल 2025 को भारत सहित विश्व की तकरीबन हर अर्थव्यवस्था पर पास्परिक शुल्क की घोषणा की थी, जिसके तहत दूसरे देशों को अमेरिका में अपना माल बेचने पर भारी-भरकम टैक्स देना पड़ेगा। ट्रंप ने भारत से आयातित उत्पादों पर 26% के जवाबी शुल्क लगाने की घोषणा की थी, लेकिन इसके क्रियान्वयन को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया था। यह अवधि अब 9 जुलाई को खत्म हो रही है। इस समयसीमा से पहले, दोनों देशों के बीच तेज़ व्यापारिक बातचीत हो रही है ताकि कोई स्थायी समझौता हो सके। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलीन लेविट ने पुष्टि की कि सभी व्यापारिक साझेदारों को एक औपचारिक पत्र भेजा गया है जिसमें उन्हें “अपने-अपने प्रस्ताव” जल्द से जल्द पेश करने को कहा गया है। भारत और अमेरिका दोनों अब एक ऐसी रणनीति पर काम कर रहे हैं जिससे न केवल शुल्क टालने में मदद मिले, बल्कि दीर्घकालिक व्यापार साझेदारी को मजबूत किया जा सके।
ट्रंप का रुख बदला: हर किसी से समझौता नहीं होगा
इस इंवेट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ किया कि वाशिंगटन अब हर देश से समझौता नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि कुछ देशों को बस धन्यवाद बोलकर कहा जाएगा कि उन्हें 25%, 35%, या 45% शुल्क देना होगा।” ट्रंप के मुताबिक, प्रशासन चाहता है कि अधिकतर देशों के साथ औपचारिक समझौते किए जाएं। ट्रंप ने यह भी कहा कि जो देश अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, उनके साथ ही समझौते किए जाएंगे। भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण इशारा है कि अगर यह डील होती है तो अमेरिका के व्यापारिक प्राथमिकता में भारत को ऊंचा स्थान मिल सकता है।
चीन डील के बाद भारत पर अमेरिका की निगाहें
अमेरिका और चीन के बीच हाल ही में रेयर अर्थ खनिजों को लेकर एक अहम समझौता हुआ है जिसमें चीन अमेरिका को “मैग्नेट और आवश्यक खनिज” तत्काल आपूर्ति करने पर सहमत हुआ है। यह समझौता पहले जिनेवा में दोनों देशों की व्यापारिक वार्ता में नहीं हो पाया था, लेकिन अब लागू हो चुका है। इसके तुरंत बाद ट्रंप ने भारत के साथ डील का ज़िक्र कर यह साफ कर दिया कि भारत अब अगली प्राथमिकता बन चुका है। पहले जिन मुद्दों को लेकर भारत और अमेरिका आमने-सामने थे—जैसे डिजिटल टैक्स, डेटा लोकलाइजेशन और मेडिकल डिवाइसेस की कीमतें—उन पर अब नरमी आती दिख रही है और देश जल्द ही इन मुद्दों को कोई स्थायी हल ढूंढ लेगें। वहींं भारत के लिए यह मौका है कि वह सेवा क्षेत्र के लिए अमेरिकी बाज़ार तक और अधिक पहुंच सुनिश्चित करे, और साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी को आकर्षित करे।
ट्रंप का भारत के साथ व्यापारिक घाटा कम करने पर जोर
अमेरिका चाहता है कि वह भारत को तेल, रक्षा उत्पाद और उन्नत प्रौद्योगिकी के निर्यात को बढ़ाकर व्यापार घाटा कम करे। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने कहा कि दोनों देश अब एक ऐसी स्थिति पर हैं जहाँ उनके व्यापारिक हित आपस में मेल खाते हैं। भारत भी अब अपनी रक्षा और ऊर्जा खरीद को अमेरिका की ओर मोड़ने को तैयार है। भारत की तेल निर्भरता अप्रैल 2025 में 90% तक पहुंच चुकी है और इसके साथ ही रिफाइनिंग क्षमता भी तेज़ी से बढ़ी है। ऐसे में अमेरिका से कच्चे तेल और रक्षा उपकरणों की खरीद भारत को न सिर्फ रणनीतिक मजबूती दे सकती है, बल्कि व्यापार संतुलन को भी सुधार सकती है। इकानॉमिक थिंक-थैंक ‘जीटीआरआई’ के अनुसार- साल 2024 में अमेरिका का भारत के साथ व्यापारिक घाटा तकरीबन 44 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुंच चुका है।