महाराष्ट्र पॉलिटिक्स में बढ़ी हलचल- भाषा विवाद में सालों बाद साथ आए उद्धव और राज ठाकरे

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20 साल बाद राजनीतिक मोर्चे पर साथ आ रहे ठाकरे बंधु

महाराष्ट्र में एक बार फिर से बड़ा राजनीतिक मोड़ आने वाला है। भाषा विरोध के चलते देवेन्द्र फडणवीस की बीजेपी सरकार को घेरने में सालों बाद ठाकरे ब्रदर्स राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने हाथ मिलाया है। कक्षा 1 से 5 तक हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के फैसले के खिलाफ उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे पहली बार एकजुट होकर विरोध जताने को तैयार हैं। यह प्रदर्शन राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत तीन-भाषा फॉर्मूले के खिलाफ है, जिसे दोनों नेताओं ने महाराष्ट्र की मराठा संस्कृति पर हमला बताया है।

5 जुलाई को दोनों दल – शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) मिलकर संयुक्त मोर्चा निकालेंगे। यह पिछले दो दशकों में पहली बार होगा जब ठाकरे बंधु किसी एक मुद्दे पर एक मंच साझा करेंगे।

पहले अलग-अलग विरोध की घोषणा, फिर बनी एकजुटता की रणनीति

गुरुवार को दोनों नेताओं ने इस मुद्दे पर अलग-अलग विरोध कार्यक्रमों की घोषणा की थी। राज ठाकरे ने 6 जुलाई को गिरगांव चौपाटी से ‘विराट मोर्चा’ निकालने की बात कही, जबकि उद्धव ठाकरे ने 7 जुलाई को आज़ाद मैदान में एक कार्यक्रम को समर्थन देने की घोषणा की थी, जिसे सामाजिक कार्यकर्ता दीपक पवार द्वारा आयोजित किया जा रहा था।

हालांकि, दो अलग-अलग आंदोलनों को लेकर समर्थकों और आम जनता में भ्रम की स्थिति बनी रही। इसी के चलते राज ठाकरे ने खुद शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत को फोन कर संयुक्त प्रदर्शन का प्रस्ताव रखा। राउत ने यह जानकारी दी कि जैसे ही उन्होंने उद्धव ठाकरे से बात की, उन्होंने बिना समय गंवाए सहमति दे दी।

ठाकरे एक ब्रांड है- संजय राउत

संजय राउत ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर उद्धव और राज ठाकरे की साथ खींची गई एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा,” महाराष्ट्र के स्कूलों में कक्षा 1 -5 तक जबरदस्ती हिंदी थोपने के फैसले के खिलाफ एकजुट और एकमात्र मार्च ही निकलेगा।”

उन्होंने आगे ठाकरे पहचान को हाइलाइट करते हुए लिखा – ठाकरे एक ब्रांड है।

सरकार के फैसले पर हुआ था भारी विरोध, अब हिंदी अनिवार्य नहीं

16 अप्रैल 2025 को महाराष्ट्र सरकार ने राज्य बोर्ड के मराठी और इंग्लिश मीडियम स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का निर्णय लिया था।

इस फैसले को लेकर भाषा, संस्कृति और पहचान के नाम पर तीखा विरोध देखने को मिला। इसके बाद सरकार ने संशोधित शासन निर्णय जारी कर कहा कि अब हिंदी अनिवार्य नहीं रहेगी। संशोधन के अनुसार, अगर किसी स्कूल में एक ही कक्षा के 20 या उससे अधिक छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा को चुनना चाहें, तो वे हिंदी की जगह वह भाषा पढ़ सकते हैं।

बीजेपी को चुनौती देने क्या साथ आ सकते हैं ठाकरे बंधु ?

फिलहाल महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार बनी हुई है। उसके पास एकनाथ शिंदे की शिवसेना का समर्थन भी हासिल है। हिंदी विरोध में राज्य सरकार को घेरने के लिए दोनों भाई साथ आ रहे हैं और इस प्रकार दोनों का साथ आना आपसी रिश्तों में नरमी का संकेत भी दे रहा है, लेेकिन यहां पर यह सवाल भी उठता है कि क्या भाषा से ऊपर उठकर अन्य मुद्दों पर भी बीजेपी को घेरने और गद्दी तक रास्ता बनाने के लिेए दोनों भाई एकजुट होंगे ?

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