केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) के दिग्गज नेता वी. एस. अच्युतानंदन का सोमवार को निधन हो गया। वे 101 वर्ष के थे। पार्टी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि अच्युतानंदन सीपीआई (एम) के उन अंतिम जीवित साथियों में से एक थे जो पार्टी की स्थापना के समय 1964 में शामिल हुए थे।
अच्युतानंदन पिछले कुछ समय से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। 23 जून को उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया, जिसके बाद से वे तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे। उनकी स्थिति लगातार नाजुक बनी हुई थी। सोमवार को उनकी हालत बिगड़ने पर मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, वित्त मंत्री के. एन. बालगोपाल, पार्टी राज्य सचिव समेत अन्य सीपीआई (एम) नेता उनसे मिलने अस्पताल पहुंचे।
पीएम मोदी ने दी श्रंद्धाजली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:
“पूर्व केरल मुख्यमंत्री श्री वी. एस. अच्युतानंदन जी के निधन से दुखी हूँ। उन्होंने अपने जीवन के कई वर्ष जनता की सेवा और केरल की प्रगति को समर्पित किए। जब हम दोनों अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्री थे, तब हमारी बातचीत और मुलाकातें आज भी याद हैं। इस दुखद घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं।”
कौन थे वी. एस. अच्युतानंदन?
वी. एस. अच्युतानंदन का जन्म 20 अक्टूबर 1923 को अलप्पुजा जिले के पुन्नप्रा गांव में हुआ था। वे केरल की राजनीति में एक मुखर और प्रभावशाली वामपंथी नेता के रूप में पहचाने जाते थे। उन्होंने 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। 2019 में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ था, जिसके बाद से वे सार्वजनिक जीवन से लगभग दूर हो गए थे और मीडिया या राजनीति में बहुत कम नजर आते थे। अच्युतानंदन सामाजिक न्याय, श्रमिकों के अधिकारों, और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष के लिए जाने जाते थे। वे उन नेताओं में थे जिन्होंने 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के बाद बनी CPI(M) को खड़ा किया और आगे बढ़ाया।
राजनीतिक करियर
वे 1980 से 1992 तक लगातार 12 वर्षों तक CPI(M) के केरल राज्य सचिव भी रहे। उनके नेतृत्व में पार्टी की नीतियां मज़दूर वर्ग और वंचित तबकों तक गहराई से पहुंचीं और CPI(M) ने एक मजबूत जनाधार तैयार किया। वी. एस. अच्युतानंदन ने अपने जीवनकाल में 10 विधानसभा चुनावों में हिस्सा लिया, जिनमें से 7 में उन्होंने जीत दर्ज की और 3 बार हार का सामना किया। उन्होंने पहला चुनाव अपने गृह जिले अलप्पुजा के अंबालापुजा विधानसभा क्षेत्र से लड़ा था, लेकिन वे उस चुनाव में हार गए थे। 2006 में वे केरल के मुख्यमंत्री बने और उनका कार्यकाल कई सुधारवादी कदमों के लिए जाना जाता है। उन्होंने भूमि सुधार, भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई, और पर्यावरण संरक्षण जैसे कई क्षेत्रों में कठोर निर्णय लिए।
2011 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने CPI(M)-नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) का नेतृत्व किया, जिसमें LDF ने 140 में से 68 सीटें जीतीं — यह बहुमत से मात्र 2 सीटें कम थीं। नतीजतन, यूडीएफ (UDF) को सरकार बनाने का मौका मिला और ओमान चांडी मुख्यमंत्री बने।